
aal faimili . chup chup vo ro lete hai .mata pita
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faimili . chup chup vo ro lete hai .mata pita
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चुप चुप वो रो लेते है ,माता पिता
एक दूजे से साझा कर दुःख ,चुप चुप वो रो लेते है
वजह कलह की बन जाए ना ,इसलिए सह लेते है
एक दूजे से
कल था खुशियों का आलम,जिम्मे दारी बंटी ना थी
आज अभाओं में भी दोनों, हंस हंस कर रह लेते है
एक दूजे
दो पाटन के बीच फंसकर , आज कल वो पिस रहा
आती सिकायत होठो तक उसे ,देख मुंह सी लेते है
एक दूजे
बचपन और बुढापा मानव ,बिन सहारा जी ना सके
जिन पर होती जिम्मेदारी वे , कभी फेर मुख लेते है
एक दूजे
कल का जिन्दा दिल हंस मुख , उसने ओढ़ी खामोशी
समझ के दुविधा उसके मन की ,गम अपना पी लेते है
एक दूजे
विकृत हो गई वो संस्कृति संस्कार, घर परिवार में थी
आज तो बस एक समझोते के , तहत संग रह लेते है
एक दूजे
दादा दादी बेटा बहु पोते पोती ,सुखी सम्पन्न जीवन
छाई ये बदली कैसी खुद को , कमरे में बंद कर लेते है
एक दूजे
आनन्द और अमृत से भरा ये ,सुंदर संसार रचा उसने
हम ही अपने अहम के कारण , उसमे जहर भर लेते है
एक दूजे
जन कवि .गोपाल जी सोलंकी
चुप चुप वो रो लेते है ,माता पिता
एक दूजे से साझा कर दुःख ,चुप चुप वो रो लेते है
वजह कलह की बन जाए ना ,इसलिए सह लेते है
एक दूजे से
कल था खुशियों का आलम,जिम्मे दारी बंटी ना थी
आज अभाओं में भी दोनों, हंस हंस कर रह लेते है
एक दूजे
दो पाटन के बीच फंसकर , आज कल वो पिस रहा
आती सिकायत होठो तक उसे ,देख मुंह सी लेते है
chup chup vo ro lete hai .mata pita
jan kavi .gopal ji solanki